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यह वह ठिकाना नहीं

एक अँधेरे कोने में अकेली बैठी रात तराश रही है दिन. सब दौड़ रहे हैं और मैं भी, तेज़- तेज़ इतना कि फट गई है एक नस, और आँख में उतर आई है एक बूँद खून की. सब रंग गया है गुलाबी. पर दौड़ना है मुझे, ज्यादा आसान है दौड़ते रहना रुकने से, और जानने से कि चले गए हैं बाकी सब कहीं और, जानने से कि यह वह ठिकाना नहीं जहाँ सब मंगलमय हो.

बाहर से झांकता हूँ भीतर, बहुत कोशिश करता हूँ समझने की कि चल क्या रहा है वहाँ. हमेशा चाहा मैंने भीतर जाना, पर दरबान कहते जब जानते ही नहीं चल क्या रहा है कर क्या लोगे जाकर भीतर? रहो यहीं अभी समझो पहले, फिर जाना भीतर. अब भी बाहर से झाकता हूँ भीतर, बहुत कोशिश करता हूँ समझने की कि चल क्या रहा है वहाँ. कुछ पल्ले नहीं पड़ता, और बीतती जाती है उमर झुकती जाती है कमर बदलते मौसमों के बीच. जानता हूँ मैं फिर कहेंगे ये यह भी कोई उम्र है जाने की भीतर? अब क्या फायदा, रहने ही दो. पर फिर भी झांकता हूँ भीतर यहाँ बाहर से, कुछ सुनता नहीं यहाँ, दीखता भी बस छोटा-सा हिस्सा है. और कुछ पल्ले नहीं पड़ता.

रेल यातना

सूखे पेशाब की गंध से भरे डिब्बे से खिड़की के उस ओर एक पगलाई भीड़ दिखी, मंदिर को घेरे खड़ी, अपनी पैंटें और पैंटियाँ नीचे कर अभिषेक करती. पर तुम्हारी लीला भी है निराली! एक टुकड़ा गूमालिंग का विसर्जित कर ढहा दी मंदिर की दीवारें. साँसों में भर गई धूल, दुर्गन्ध ताज़े गोबर की, और वीर्य की. घुटने लगा दम, और आगे खिसक लिया हमारा डिब्बा.

सोफिया - 4

आँख खुली, सुन रही थी टिक-टिक पर देखी नहीं घडी, अँधेरा घिर आया होगा अब तक. प्रतिबिंब छोड़ती आवाज़ तुम्हारी -शब्द तुम्हारे याद तो नहीं अब- टकरा रही अबतक, तोड़ रही मेरे बुने जाल -कंक्रीट के पुलों से मजबूत- एक-एक कर, तलाश में हैं पैने कोनों वाली कुछ यादों की. पर यादों ने मेरी भर दिया हैं जाने क्या-क्या हर खाली स्थान में.

सोफिया - 3

अकेली लाल चीख धीरे-धीरे घुल रही है नीली खामोशी में. याद तो होगा तुम्हें वह नौ मंजिला मकान? बिना-दीवारों-बिना-जीनों-वाला? हमेशा बनाए रखा दर्शक मात्र उन्हें. सराहा, सवांरा अपनी लीलाओं को, और बढ़ चले. ======================= एक लीला -छत पर, गीले-से आईने में देख शेव कर रहा था, निपल के पास खून फूट पड़ा, आँखों के ऊपर भी. आँखें जल रही थी पसीने की बूंदों से. आँखें पोंछ कर आगे लिखने बैठा, कुछ सूझा नहीं, काँफी लेने उठा चकराकर गिर गया. जाने कितनी देर बाद कुछ मित्र आए. ले जाते हुए ड्राईवर को समझाने को कहा - कलाकार हैं.- ======================== कुछ हाथ छूटे, जाने कितने छोड़ दिए, याद हैं तुम्हें? अभी तो याद होंगे तुम्हें कुछ रिश्ते भी, हैं ना?