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दिसंबर, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भीतियाँ

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भय. उन्हें सुन-सुन कर. एक दूसरे से भी. अपने आप से भी. भय के प्रकट होने का भय. भयभीत न होने का भय. अकेले. सुन्न. कमज़ोर. छूट रहा है.... धँस रहा हूँ... कोई रेखा पार... जाने कब... भय. अब मुझे, कुछ दिखाओ, ख़ास. फिर से करवाओ विश्वास. मोमबत्तियों में. बेहतर थीं, कई सौ गुना, वे मोमबत्तियाँ इस हुआँ-हुआँ से.

ज़ंग

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तुम मेरी ज़िन्दगी में आए, मुझे लगा- तुम्हारे साथ उड़ पाऊँगी, पर तुम उड़ गए अकेले! मैं रह गई- हाथ फैलाए ऊपर, तुम्हारी ओर, देखती रही तुम्हे दूर जाते... .................................... तुम्हें देख कर लगा मुझे मुझ जैसी ही हो, एक दिन उड़ सकोगी मेरे साथ, समझ सकोगी मेरा दर्द. पर पास आकर जाना- तुमतो मेरा हाथ थामे उड़ना चाहती हो, ख़ुद के पंखों पर भरोसा करना ही नहीं चाहती. कल मैं ना रहूँ तो

|| तपस् तप्त्वा सर्वम् अस्रजत ||

धीरे धीरे घड़ी चल रही है, और तेज़ी से आगे बढ रही हैं हमारी गाडियाँ, एक दूसरे की ओर. टक्कर. और छू... यहाँ से, कहीं और. शाम ढले. पर, इन खिंचे हुए पलों में, जाने कब आएगा वह पल.