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दिशाभ्रम

गर्माहट फ़ैलने लगी मेरे गाल पर होठों के कोने से, कुछ टपका कान में - तब अहसास हुआ उलटी का. किसी ने कहा - अब बच जाएगा घबराने की बात नहीं. --------------------------- तुम आईं. बंद हो गया कांच के बाहर झांकना. पहली हिट - और मैं समझ बैठा प्रेम. -------------------------------- रोज़ सुबह कांच के टुकड़ों की तरह हर दिशा में फ़ैल जाते, दौड़ जाते एक दूसरे से बेपरवाह, चल तक नहीं पाता मैं कभी पैर की छोटी उंगली टकरा जाती कभी घुटना ठुक जाता. तुम आईं. जम गया कांच. और मैं, मैं समझ बैठा प्रेम. ---------------------------- अब इतनी आसानी से जमता नहीं कांच. हिट नहीं लगती इतनी जल्दी. छोटे-छोटे कण तेज़ी से दौड़ते चीरते रहते हैं मेरे मस्तिष्क को घंटों. -----------------------