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फिर से...

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आलाप

अ, याद है तुम्हें एक ऐसी भी कविता-सी थी जिसे पढ़ कर तुम रोई थीं. फिर दिखाया था तुमने अपने होटल का कमरा और लैपटॉप के कैमरे से खिड़की के बाहर झाँका था मैंने. लगभग दो बरस हो गए थे  फिर भी तुम... फिर से सीख लिया था मैंने बेमानी चीज़ों से खुश होना. पर वह किस्सा तो ख़तम होना ही था, आखिर  शुरू होनी ही थी गीत की उड़ान.

कीड़ा

बचपन में मुझे चाहिए था कोई पालतू प्राणी खेलने के लिए. माँ ने कहा तुमसे न सम्हलेगा . तो मैं ढूंढ लाया बीसियों पैरों वाला एक कीड़ा. खुद ही ढूंढ लेता वह अपने लिए खाना, खुद ही सीख लिया उसने मेरी खाल पर  रेंगना, और अपनी काली नाक-सी मुझसे रगड़ना. बचपन में सब अच्छे लगते थे मुझे, सब. उसकी पिलपिली त्वचा से उसके गिलगिले शरीर से तब घिन नहीं होती थी मुझे. पर अब वह  कुचला जाए तो अच्छा. घिसट घिसट कर सब गीला कर दिया उसने.

एक आग

एक आग है जो डूबने नहीं देती गूंजती आवाजों वाली उस गली को, अँधेरे में. एक आग है जो रोशन किये है सब दूरियों को. एक आग है जो पहरा लगाए खड़ी है क़दमों की आहट पर.