मक्खियाँ
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEvXYYk8GA9IqnWvcq28B0ulefWHrnhcrCM1UXtbju9brD5dJMcVldy2jfMOuVA0lAmfQGX9QaD3pYSJz-hTlUUQckVXdbHtke1a5AhctGDL_E4PsFs95BJBEuI9SAz7FOrVrRhNQwW5a_/s320/Webp.net-gifmaker.gif)
सत्तर वर्षों से पनपती मक्खियाँ उसके चेहरे पर बैठी थीं, और भविष्य सोया पड़ा था अस्पताल के दरवाज़े पर. इतिहास को ढोते-ढोते समय से पहले बुढा गया था वह बुखार के चलते, जहाँ ठंडी संगमरमर मिली वहीँ पसर कर सो गया. जन्मोत्सव था उसका आज, केक भी कटा था ये मक्खियाँ उसपर भी बैठी थी जब बँट रहा था वह सब में बराबर बराबर.