सोफिया - 3

अकेली लाल चीख
धीरे-धीरे घुल रही है
नीली खामोशी में.

याद तो होगा तुम्हें
वह नौ मंजिला मकान?
बिना-दीवारों-बिना-जीनों-वाला?
हमेशा बनाए रखा दर्शक मात्र उन्हें.
सराहा, सवांरा अपनी लीलाओं को,
और बढ़ चले.

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एक लीला
-छत पर,
गीले-से आईने में देख
शेव कर रहा था,
निपल के पास खून फूट पड़ा,
आँखों के ऊपर भी.
आँखें जल रही थी
पसीने की बूंदों से.

आँखें पोंछ कर
आगे लिखने बैठा,
कुछ सूझा नहीं,
काँफी लेने उठा
चकराकर गिर गया.

जाने कितनी देर बाद
कुछ मित्र आए.
ले जाते हुए
ड्राईवर को समझाने को कहा -
कलाकार हैं.-
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कुछ हाथ छूटे,
जाने कितने छोड़ दिए, याद हैं तुम्हें?
अभी तो याद होंगे तुम्हें कुछ रिश्ते भी, हैं ना?

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