संदेश

भीतियाँ

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भय. उन्हें सुन-सुन कर. एक दूसरे से भी. अपने आप से भी. भय के प्रकट होने का भय. भयभीत न होने का भय. अकेले. सुन्न. कमज़ोर. छूट रहा है.... धँस रहा हूँ... कोई रेखा पार... जाने कब... भय. अब मुझे, कुछ दिखाओ, ख़ास. फिर से करवाओ विश्वास. मोमबत्तियों में. बेहतर थीं, कई सौ गुना, वे मोमबत्तियाँ इस हुआँ-हुआँ से.

ज़ंग

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तुम मेरी ज़िन्दगी में आए, मुझे लगा- तुम्हारे साथ उड़ पाऊँगी, पर तुम उड़ गए अकेले! मैं रह गई- हाथ फैलाए ऊपर, तुम्हारी ओर, देखती रही तुम्हे दूर जाते... .................................... तुम्हें देख कर लगा मुझे मुझ जैसी ही हो, एक दिन उड़ सकोगी मेरे साथ, समझ सकोगी मेरा दर्द. पर पास आकर जाना- तुमतो मेरा हाथ थामे उड़ना चाहती हो, ख़ुद के पंखों पर भरोसा करना ही नहीं चाहती. कल मैं ना रहूँ तो ...

|| तपस् तप्त्वा सर्वम् अस्रजत ||

धीरे धीरे घड़ी चल रही है, और तेज़ी से आगे बढ रही हैं हमारी गाडियाँ, एक दूसरे की ओर. टक्कर. और छू... यहाँ से, कहीं और. शाम ढले. पर, इन खिंचे हुए पलों में, जाने कब आएगा वह पल.

पास्चराइजेशन

पास्चराइजेशन एक चाँदी की अशर्फी के बदले एक जोड़ी हाथ, तले हुए, बिना मिर्च मसाले के, (सात्विक भोजन आखिर!) और क्या चाहिए मुझे जीने के लिए! ऊन के गोलों से स्वेटर बुन बुन के, सपने बुनते हुए, मर गई मैं, और अब फिर जन्मी हूँ, सपनो के बिना. अब विश्वास नहीं तुम्हारे ईश्वर और न्याय में, और तुम्हारे निर्वाण में. है विश्वास केवल- ख़ुद में, और पास्चराइजेशन में!

"एक ख्वाब सा देखा है, ताबीर नहीं बनती"

तैर रहा था मैं कहीं जब वह था तुम्हारे साथ. एक बरछी मुझे लगी और खींच लिया गया मैं किसी जहाज पर. और फ़िर एक दिन सीने से लगा था मैं, उसने अपने हाथ से हमारी नाभि अलग की, और गायब हो गए सदा के लिए. कुछ सपने देखे थे, पर तस्वीर कुछ सिकुड़ गई है, तुम भी दम भर में कुछ कर न पाओगे. पहले, बच्चा साथ रखती, भली जो दिखती थी, बच्चा साथ हैं, क्या बुरा कर लेगी. और अब, दम भर में ही... तेज़, बहुत तेज़ दौड़ा, खून की बूँद आ रुकी आँख में, पर फिर भी दिख रही हो तुम, टोकती हुई, हमेशा-सी. "कुछ नया करो तो, सब कैसे जानें कि अच्छा है या बुरा?" "हम्म" आवाज़ में कभी आंसुओं को सुना हैं? छोटे-छोटे शब्द, दूर दूर, नीली आँखें, खुश्क, सूखे गाल. ठक-ठक! ठक-ठक! नहीं खोलना दरवाजा. ठक-ठक! ठक-ठक! क्या करोगे मुझे देख कर? वही पुरानी कोशिश, तुम-सा नहीं हूँ - फिर भी तुम्हें हक नहीं, काट-काट कर देखने का, एक-एक हिस्से को अलग-अलग कर के मेरे अनुभवों के. तुम सोचते हो मुझे समझ पाओगे! हा!

हूँ -5/ फ्रीडम हॉल

आज तुम पूछते हो कल-सी क्यों नहीं? पर कल भी तुम मुझसे खुश न थे! कहते हो - कमज़ोर हूँ, नहीं है ठहराव! क्यों तुम्हें खटकती है, मेरी यह स्वतंत्रता? मैं तुमसे ही नहीं, अपने कल से भी स्वतंत्र हूँ! मुझे समझ लो अगर पूर्णता में, तो क्या यह मेरी मौत न होगी? विचार, तरल न हों, तो विचार कैसे? 0

अर्थ शून्य

अर्थ शून्य