|| तपस् तप्त्वा सर्वम् अस्रजत ||

धीरे धीरे
घड़ी चल रही है,
और तेज़ी से
आगे बढ रही हैं
हमारी गाडियाँ,
एक दूसरे की ओर.

टक्कर.

और छू...
यहाँ से,
कहीं और.
शाम ढले.

पर,
इन खिंचे हुए पलों में,
जाने कब आएगा
वह पल.

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