गिफ्ट-व्रैप किए डब्बे में कभी एक कान मिले तुम्हें, साफ़, साबुन की गंध लिए तो पहचान तो जाओगी किसका है? चौन्कोगी तो नहीं जानकर? कभी पकी रहती थी कान की लव तुम्हारे काटने से. मेरे काटने से नहीं पकी.
उसने बांधा, एक लाल धागा, मेरी कलाई पर उसने कहा, बांधे रखेगा यह मेरी आत्मा को, मुझसे मुझमें। वह घबरा गई थी, टूटते देख सारे बंधन मेरी आत्मा देखी थी उसने उड़ते हुए।
गले में अन्दर कहीं खुजली सी हो रही है. धसका सा उठता है कुछ देर खांसता हूँ पर वह खुजली जाती नहीं. नाखून बड़े हैं उंगलियाँ गले तक आ कर रुक जाती हैं कभी हलकी-सी खुरच और बूँद भर खून पर इतना काफी नहीं अब समय आ गया है अंगूठे से कंठ तक पहुँचने का.