आलाप

अ,
याद है तुम्हें
एक ऐसी भी कविता-सी थी
जिसे पढ़ कर तुम रोई थीं.
फिर दिखाया था तुमने
अपने होटल का कमरा
और लैपटॉप के कैमरे से
खिड़की के बाहर झाँका था मैंने.
लगभग दो बरस हो गए थे 
फिर भी तुम...

फिर से सीख लिया था मैंने
बेमानी चीज़ों से खुश होना.
पर वह किस्सा तो ख़तम होना ही था,
आखिर 
शुरू होनी ही थी
गीत की उड़ान.

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