कीड़ा


बचपन में
मुझे चाहिए था
कोई पालतू प्राणी
खेलने के लिए.
माँ ने कहा
तुमसे न सम्हलेगा .
तो मैं ढूंढ लाया
बीसियों पैरों वाला
एक कीड़ा.
खुद ही ढूंढ लेता वह
अपने लिए खाना,
खुद ही सीख लिया उसने
मेरी खाल पर  रेंगना,
और अपनी काली नाक-सी
मुझसे रगड़ना.
बचपन में
सब अच्छे लगते थे मुझे,
सब.
उसकी पिलपिली त्वचा से
उसके गिलगिले शरीर से
तब घिन नहीं होती थी मुझे.

पर अब
वह  कुचला जाए तो अच्छा.
घिसट घिसट कर
सब गीला कर दिया उसने.

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बचपन की रोचकता, बड़प्पन का सौन्दर्यबोध..

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