धूप - 5
नदी पर झुक गया था सूरज
सिन्दूरी हो चली थी शाम,
और तुम आने वाले थे
रात के साथ.
रात आई.
पसर कर बैठ गई.
तुम न आए.
न तुम्हारे कदमों की आहट ही.
फिर सुनहरी धूप खिली,
मेरी अपनी.
सिन्दूरी हो चली थी शाम,
और तुम आने वाले थे
रात के साथ.
रात आई.
पसर कर बैठ गई.
तुम न आए.
न तुम्हारे कदमों की आहट ही.
फिर सुनहरी धूप खिली,
मेरी अपनी.
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