मसीहा
चला आया हूँ
तेरे पास
उम्मीद लिए
पहचान करने की
इस अजनबी शहर से.
अपने पंख से छू कर,
पंखुड़ी से काट कर,
आज़ाद कर दे
इस शरणार्थी को.
या
दे दे एक वजह
बंधे रहने की
इन जंजीरों में.
तेरे पास
उम्मीद लिए
पहचान करने की
इस अजनबी शहर से.
अपने पंख से छू कर,
पंखुड़ी से काट कर,
आज़ाद कर दे
इस शरणार्थी को.
या
दे दे एक वजह
बंधे रहने की
इन जंजीरों में.
टिप्पणियाँ
तेरे पास.....’
आना ही था... गया वक्त तो नहीं जो लौट कर न आ सको :)