मनोरंजन

सुबह-सुबह
आँख भी अभी खुली नहीं थी पूरी
पर खड़ा था वह
पानी, गिलास और कुप्पी लिए,
आँख भी अभी खुली नहीं थी पूरी
रेल के किनारे.
आस पास उसके
उछल रहे थे कुछ बंदर.
अचानक
बजाने लगा वह
कुप्पी से गिलास,
पर ध्यान किसी का भी
उस बच्चे पर गया नहीं,
हाँ, कुछ लोग
खिलाने लगे रोटी
बंदरों को.

टिप्पणियाँ

अच्छी लगी रचना। आज यही तो हो रहा है । शुभकामनायें
आशीष मिश्रा ने कहा…
बहोत ही अच्छा लिखा है आपने. शुभकामनाएँ
भारत प्रश्न मंच पर आपका स्वागत है. mishrasarovar.blogspot.com
बलविंदर ने कहा…
सच बहुत अच्छी तरह से अपने अपनी संवदनाओं के साथ -साथ समाज के यथार्थ को भी उकेरने का सफल प्रयास किया है. ऐसे ही लिखते रहें .

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