Fatal Familial Insomnia

वह
हमेशा पड़ी रहती
बिस्तर पर,
पर कहती
निद्राभाव है!
मैंने देखा फिर
आँखें उसकी
सदा रहती अधखुली.
रातों को उठकर
सवारती अपने केश,
लगाती बटन,
लगता जागी है,
पर
अटक गई थी
किसी सेतु पर
दो दुनियाओं के बीच

जागने लगे उसमे, कुछ भय,
दिखने लगे जाने कौन,
और वह सदा दूर निद्रा से.
बंद हो गया फिर बात तक करना,
बंद हो गया रातों को उठना,
हमेशा बिस्तर पर,
आँखें खोले.
उसका मस्तिष्क
घुल रहा है
किसी पिलपिले तत्व में.
देख रहा हूँ मैं
असहाय
तड़पते उसे
...
अचानक!


** Making an entry here everyday doesn't look like one of my better decision. I had taken it as my output had drastically slowed down. Now, after 3 weeks, I have reshaped as a post every Sunday. Hope that be better. The trouble is I feel I have exhausted everything I wanted to write about within first few months after I started out.

टिप्पणियाँ

जब तक भाव है, सोच है और अभिव्यक्ति की क्षमता है तब तक लिखें और पोस्ट करें। यह ज़रूरी नहीं कि हर कोई आकर कमेंट करें पर पढ तो सभी लेते हैं। इस प्रकार आपकी रचनाओं को एकजुट करने का अवसर भी मिलेगा।

तो आप अध्खुली अलसाई आंखों कॊ पुरी तरह खोलिए और सक्रीय हो जाइए:)
Dont think this is excessive. keep running as far as you can, as fast as you can and as much as you can. Best of luck.
Gurramkonda Neeraja ने कहा…
Keep going...
successful don't relax
They feel relax with their work
do not stop to express your thoughts

ALL THE BEST
theek hai .kavita srijan hai. masheenee kaarya naheen. isliye ab, pratidin ke sthan par ''rawiwaar''; sahee.

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