फिर हरी होंगी

सदाबहार वृक्षों का एक वन था
उसके सीने में,
चिड़ियाएँ चहकती रहती थीं,
कुछ हिरण भी थे शायद
पत्तियों में छुपे हुए.

न जाने कब इतना घना हो गया था,
कितना भी पानी बरसे
वह सब सोख लेता था,
बाढ़ में बहता नहीं था.
_____

एक दिन हवा चली
बहुत तेज़,
टहनियाँ बज उठीं
रगड़ उठी,
भयावह दावानल ने बस
लाल रणभूमि ही छोड़ी.

उर्वर रणभूमि मगर
स्नेह से सींची
घास बिछाई
कुछ पौधे लगाए.
एक मेरा भी बीज था उनमें
"पतले से पत्तों वाला
एक पौधा उगेगा इससे."

चिड़ियाएँ
चिड़ियाएँ चहकती थीं तब भी
हिरण कहीं न था मगर.
_____

हर झाडी का रंग
अब भूरा लगता है,
लगभग काला, कोयले सा
गुलाब लगता है,
न जाने किसकी घास थी यह
रेत के रेशों सी चुभती है,
ये जले से बूटे हैं जो
किसी ने धनिया बोया लगता है.

पतले पत्तों वाला
मेरा भी एक पौधा है,
आग-सी लाल हैं उसकी पत्तियाँ.
"मुरझाए हुओं को मत देखो
इन लाल पत्तियाँ को देखो
ये फिर हरी होंगी."
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A retelling of flash fiction Do Not Count the Withered Ones by Caroline M. Yoachim

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