सार
पटरियाँ हैं रेल की,
घर से कुछ ही दूर
सड़क के ठीक ऊपर।
कोई मिलता है मुझे
हर रोज़ खड़ा वहां
पटरियों को देखता
चढ़ने को तैयार।
मैं भी रुका वहां
ज़िप खोले कुछ देर
फिर चढ़ने लगा दीवार
न जाने किस पार।
घर से कुछ ही दूर
सड़क के ठीक ऊपर।
कोई मिलता है मुझे
हर रोज़ खड़ा वहां
पटरियों को देखता
चढ़ने को तैयार।
मैं भी रुका वहां
ज़िप खोले कुछ देर
फिर चढ़ने लगा दीवार
न जाने किस पार।
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