बुलबुले

एक ख्वाब छुपा रखा था
नीली होमियोपैथी की शीशी में
मुठ्ठी में भींचे लिए जा रही थी उसे
सागर से मिलवाने।

कुछ बुलबुले उठे
जब छना वह ख्वाब
रेत की परतों में,
रेत की परतों में
पाँव के निशान तो मिलेंगे
कभी चलते, कभी दौड़ लगाते,
पर वह छुपता छुपाता ख्वाब
सदा कुछ और गहरा छनता जाएगा।

टिप्पणियाँ

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