विलुप्ति

मैदान के कोने में जो
बिछी है घास बेशर्म
बस उसी में जागते हैं
केचुओं के भूत सब

हाथ में काँटा लिए वह
घुटनों पे बैठा हुआ
चुन चुन कर भर रहा है
कांच की बोतल में अब

लहराएगी एक बार फिर
हर खेत में फसल
सोए हुए सब केचुओं को
जगाएंगे ये भूत जब.

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