काजल की कोठरी

एक अँधेरा उठा
सीढ़ियाँ गायब हो गई
सब से ऊपर की तीन बाकी हैं अभी,
फर्श पर कुछ काई-सा बिछा है शायद
साफ़ दिखता नहीं।

छत पर चला आया हूँ मैं
चटाई और कंबल उठाए
हर ओर काली धुंध है
धरती से उठती हुई।

सब छतों पर बैठे हैं
अपने अपने घर में कैद
जो भी उतरा अँधेरे में
अंधेरा बन गया।

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