जाने नहीं दूंगा - 2

कुछ बचा नहीं है
कहने को अब।
कुकर की सीटी की गंध,
टेबल पर छूटे कप के निशान,
उड़ चुके हैं।
टपकते पानी की आवाज़,
जीत की ख़ुशी का शोर,
बंद हैं।
अब बस विदा
खिड़कियों से, परछाइयों से,
बोतलों से, रंगों से,
कंगनों से, शंखों से,
बादलों से, बूंदों से,
शब्दों से, अर्थों से।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Fatal Familial Insomnia

शायद यह सब

तेरे कैनवस दे उत्ते