स्नान

पानी से भरा मग्गा
सिर पर उड़ेलते समय
बाईं भौंह पर उंगली लगी
और दर्द दौड़ उठा
पूरी आँख में।

एक याद है यह
उन दिनों की जो कटते थे
बस जूस और बिस्कुट पर,
दिन भर इंतज़ार
ऐसी भूख का
जो ले जा सके
कहीं दूर।

गिर पड़ा था उस शाम
कमोड लगा था सिर में
और कुछ पल खो गए थे।

उन खोए पलों की तलाश में
अब तक भटक रहा हूँ
और उनके डर से
घर चला आया हूँ।

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खोने का भय, फूटते संकेत।

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