सागर किनारे

वह चलता है
और साथ चलता है
एक जाल,
उसके ठीक पीछे
ज़मीन पर घसिटता।
बाल, खाल जो झाड़ते हैं
जो छोटे छोटे टुकडे गिरते हैं,
सब के सब फंस जाते हैं - सदा के लिए।
किसी रात जब
कहीं कोने में बैठा
सब टुकड़ों को जोड़
खुदको बनाता है
तो कुछ पहचान में न आने वाले टुकडे मिलते हैं,
और कुछ छेद।

टिप्पणियाँ

सब लपिटाये जाते,
काल जाल है फैला।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Fatal Familial Insomnia

शायद यह सब

तेरे कैनवस दे उत्ते