तीन बजे

बालकनी में बैठा
मैं पढ़ रहा था
सिल्विया प्लाथ।

इक्का दुक्का और घरों में
जल रही थी लाइटें,
कोई जगा हो शायद।

पर कोई आहट नहीं।

टिप्पणियाँ

समय सुलाता जाता सब को,
गति के मद में बहके जग को।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Fatal Familial Insomnia

शायद यह सब

तेरे कैनवस दे उत्ते