झील

दूर किसी कोने में सूरज के पिघलने के बाद
कुछ तारे आ जाते थे मेरे हिस्से के आकाश में.
मैं बिस्तर पर पड़ा उन्हें देखता रहता
और वे खुद में डूबे टिमटिमाते रहते.
पुराने प्रेमियों-सा रिश्ता था हमारा
बस साथ होने का एक एहसास.

फिर खींच लिया ज़िन्दगी ने
मुझे खिड़की से दूर
और धीरे धीरे पा ही ली हमने
अंधेरों पर विजय.

आज, थककर, फिर उसी बिस्तर पर लेटा
प्रकाशमय है आसमान
हमारे उजालों का ऊंचा प्रतिबिम्ब
और मेरे हिस्से में बैठा है
चाँद
बिल्ली कि तरह मुस्कुराता.

ना अँधेरा है, ना तारे,
दूर काले वृक्ष हैं
काली झील से पानी पीते,
उजालों में कैद. 

टिप्पणियाँ

थकना, क़दमों में रहता है।

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