प्रतिबिम्ब

आइनों के जाल में
एक कैदी है सच
ढेर-से प्रतिबिम्ब उसके
तैर रहे हैं तरंगों पर
दौड़ रहे हैं तारों पर
उतर रहे हैं शब्दों में
ढल रहे हैं नारों में।

पर वह खुद
कहीं छिपा बैठा है
और मैं उसके प्रतिबिम्बों से
उसे ढक देना चाहता हूँ
वरना
वह घुस पड़ेगा
मेरे घर-पड़ोस में।

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