इंतज़ार

कल्पना की थी मैंने
तड़तडाती गोलियों के बाद
लम्बे सन्नाटे की.
सहमी, चुप आखों और
मुर्दा शहर की.

पर
बज रहे थे सबके फोन
आ रहे थे ढेर से मैसेज
फटकार लगाते –
हम सब हैं चिंतित
और तुम्हें इतनी फुर्सत नहीं
कि एक कॉल कर दो.

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