फ़ना

छिल गए हैं घुटने तुम्हारे
फिर भी तुम खुश हो
मानते हो कहना
बिना  कहे कुछ करते नहीं।

देखते हो, बदलता ईमान अपने खुदा का
पर फिर भी काटते नहीं उसका हाथ
चबाते नहीं उसकी उंगलियाँ
बस मुँड़ा लेते हो सारे बाल
रहने को साफ़ उसके दरबार में।

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