तो एक और मारा गया वह जानता था , मारा जाएगा, और मारा गया- दिन के उजाले में सब देख लें जिससे. पर उसकी सड़ती लाश आतंकित नहीं करती मुझे, उस पर रेंगते कीड़ों से घृणा नहीं होती मुझे. न ही उसकी गायब होती खाल से न ही पिघलती उसकी अंतड़ियों से . नहीं, उसकी लाश से घृणा नहीं होती मुझे. और न ही उन ऊँचाई पर खड़े पोशाकधारियों से ही कोई घृणा होती है. उनके ऊंचे स्वर- इस मौत का स्वागत करते- डराते नहीं मुझे. इनसे भय खाकर मैं कभी नहीं भागूँगा, एक कदम भी पीछे न लूँगा. जब ये आग उगलते हैं तब उठता धुआं पीकर जो मदहोश हो चिल्लाती भीड़ है, इन्हें घेरे खड़ी भीड़, वह थर्रा देती है मुझे. कांपने लगते हैं मेरे हाथ और डिगने लगते हैं मेरे कदम. इनकी सिली हुई आँखें और झूमते हाथ- थिरकते कदम और कुचले पन्ने- धर्म से प्यार और सत्य से नफरत- इनका नशा और खुले मुंह- इनकी भूख और इनकी खुराक- भर देती हैं मुझे आतंक से. कल तक पहचाने तो जाते थे ये, पर आज कोने में बसी परछाइयों से निकल कर ये मुझ जैसे ही लगते हैं, मेरी माँ, मेरे दोस्तों जैसे, मेरे साथ गपियाने हर नुक्कड़ पर खड़े हम-सफरों जैसे. हाँ, उस सड़ती लाश से घृणा नहीं होती मुझे, क...
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