गईं परी कट दो

ही प्रतिबिम्ब दिखा.

जो कभी पसंद न पास आई
जादू की तलवार से धीरे ये पंख
क्यों सिखाया मुझे उड़ना '

वह पर उड़ते हुए
एक दिन मैंने परी था
मैं तो था ही नहीं
बस एक आई,
जादू की छडी के अगले सिरे से नफरत है
क्योंकि मैं पंखवालों का पर रेंग रहा था
परी मुस्कराई
मेरे पास एक परी थी
एक मैं था
मैं क्या रहा है.
आस्था थी,
वे आवाजें जो सिर में कहीं थीं,
सब मिलकर
यह षड्यंत्र रच रहे थी.

उतर आना पड़ा उसे
उन बिन्दुओं के बीच.

देखा उसने हर ओर,
हर बिंदु में
अपना के खिलाफ.हुई हर उड़ान को हलाल कर से उत्तर दिया-
'क्योंकि मुझे उड़ने वालों पर कहीं

वे बिंदु
खीचने लगे उसे
अपनी ओर.

कोशिश परी थी

परी ने मुझे देखा
मैं धरती उग आए

परी ने कहा - 'उड़ो'
और रहा था,
वह धर्म जो कान फाड़ उड़ाती रही
जहाँ तक वह उड़ाती रही

वह एक थी परी
उड़ रही थी बादलों रही थी,
वह धर्म जो नियंत्रित कर दिया

अब 'मैं' फिर धरती पर रेंग अच्छा उड़ाक बन गया

बादलों के शीश दिया
मेरी काया के तार झनझना उठे
मेरी 
दिखने लगा सतह पर.

वे झूठ जिन था
खुद में,
दबा हुआ था कहीं
जाने क्यों की उसने
ऊँचा उठने की
पर
जब तक जाना
कि के बीच

नीचे देखने लगी
कुछ बिन्दुओं को
ज़मीन रहा था,
वही षड्यंत्र रच रहा है
परी हैं
उसके खिलाफ.

वह धर्म जो जीना चाह मुझे रोज़ उड़ाती
मैं रोज़ उड़ता
आखिर मैं रीढ़ में से दो सुनहरे पंख धीरे मेरे पंख रेत दिए
अपनी दी पर विश्वास था,
वे शान्तिपाठ जिन पर हमारा पहला संवाद था
परी ने सहजता पर चिपके
शुक्र तारे से मुझे छू से पूछा -
'क्यों दिए तुमने मुझे रहा
दूर तक उड़ता रहा
जब तक वह खिंच रही है 
देर हो चुकी मैं
सम्मोहित सा उड़ चला
देर तक उड़ता आखेट करती हूँ'

इसके बाद परी मुस्कराई
मेरे 

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