तुम बिन, जाऊं कहाँ...

अब भी
कभी कभी
लंबी छुट्टियों में
आ जाता हूँ तुम्हारे शहर.

हर बार कुछ पल
विक्ट्री मैदान पर गुजारता हूँ.
हर चेहरे  को देखता हूँ
इस उम्मीद में कि
एक तो तुम्हारा हो.

सब कुछ वही तो नहीं
पर मैदान तो वही है,
शायद अब तुम आस-पास रहती भी नहीं.
अतिम बार जब मिले थे
सुमी भी साथ थी,
और तुम हक-बका गई थी
मेरी तस्वीर देख, उसके बैग में.

अब तो उस तस्वीर वाला मैं भी कहीं खो गया हूँ.
बस उस ही की तलाश में भटक रहा हूँ,
भटकता रहा हूँ काफी वक्त से.

वक्त निकलता भी जा रहा है,
और अटक भी गया है वहीँ.
जहाँ भी जाता हूँ, उसके निशान मिलते हैं,
वह नहीं मिलता.

टिप्पणियाँ

Sunny Lyngdoh ने कहा…
कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं
तो..... त्रिकोण का तीसरा कोण भी खो गया:(
Sunil Kumar ने कहा…
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति, बधाई
Luv ने कहा…
@cmp uncle: kone bache he kahan!

@sunil kumar: Thanks :)

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