सीलन

बारिश
पहले भी आई हैं
मेरे कमरे में
खिड़की से उतर कर
उछलती, गुनगुनाती.

पर पहले कभी
सीलन नहीं भरी उसने
इन दीवारों में.
हर दरार में भर गई हैं
ठहरे पानी की गंध.
और कांच पर उँगलियों के निशान नहीं
सिर्फ कोहरा छाया है.

टिप्पणियाँ

खाला का घर है, पुराना हो गया तो सीलन रहेगी ही:)
Arun sathi ने कहा…
सार्थक और सशक्त कविताऐं।
आभार।

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