मेघदूत?

उठा
खुद को ट्रेन में पाया,
तुम से मिला था फिर,
रोज़ ही की तरह  
पिछले तीन दिनों से.

हम बैठे थे
मेज पर आमने-सामने,
मैं अपनी कॉफी के साथ
और  तुम अपना स्कैच पैड लिए.
पुराने खंडहरों का स्कैच खींचती
सड़क के पार से.
अजीब-सा है यह शहर
रोज़ चला आता है यहाँ
अतीत, वर्तमान से मिलने.
और मेज़ पर पड़ी थी
एक प्रति मेघदूत की
मेरे बनाए नोट्स से भरी.

तीन सप्ताह
उस शहर में
जहां तुमसे मिला
एक अरसा पहले.
एक अरसा.

खुद को देखता हूँ
कैफे के बाहर बैठा  -
तुम्हारे किसी स्केच की तरह -
हाथ में कॉफी लिए,
चेहरे तकता 
शायद एक तुम्हारा हो इनमें.

कुछ पुराने सन्देश
पहुँचते है मुझ तक,
मेरे भेजे,
बचाने को मुझे
तड़ी-पार होने से.
पर हमेशा देरी से .  
सही दूत नहीं न मैं.

टिप्पणियाँ

अजीब सा है यह शहर
अजीब सा है यह सफ़र!!!!!!!
pallavi trivedi ने कहा…
किसी किसी दिन एक ही मूड का पढने को मिलता है ...ये भी अन्दर उतर गयी!

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