गैंग रेप

बस एक ही काम किया था उन सबने
प्रेम से मजबूर होकर,
बस एक ही -
खा लेने का उसे,
कुछ ही मिनटों में
उसका हर निशान मिट गया -
चबा डाला गया.

आँखें सिल गई थीं सबकी
खुशबू से खिंचे चले आए थे,
खुशबू -
किसी फ़रिश्ते से उठती,
मीठी-मीठी.

और फिर,
प्रेम कुछ होता ही ऐसा है,
मोक्ष जैसा संतोष.


***This is an unnecessary rip-off of Das Parfum by Patrick Süskind. Jean-Baptiste Grenouille makes me write over n over, why to leave out the unnecessary one?

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