संस्कार

दरवाज़े पर वह खड़ा था
सफ़ेद बाल,
मोटी भौंहें,
चेहरे  पर झुर्रियाँ -
हर एक में सोए कई सौ विचार,
यह  वही था
जो कुछ चालीस साल पहले
मर चुका  था -
पर अब तक इसका शरीर
ज़रा भी नहीं गला था,
ठुड्डीउठाए खड़ा था.

उसके गिरते ही
एक रणसिंगा गूँज उठा
और एक विशालकाय घूँसे ने
एक ही प्रहार से
पूरा मंदिर ढा दिया.

टिप्पणियाँ

यही दैत्य है
इसको मत छोडो;
मार मार कर घूँसे
जबड़े तोड़ो!
सफ़ेद बाल.... झुर्रिया.... इन्हीं में तो है जीवन का निचोड़!

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