तीमारदारी

तुम,
खट्टे दूध की गंध लिए
(अभी पिया जा सकता है),
सोते हुए भी
रह रह कर
सिहर उठतीं.

मैंने
खुद को जगाए रखा,
कभी तुम्हें सहलाया,
कभी पाँव दबाए,
फिर भी
जाने कब आँख लग गई.

तुम बैठी हुई थीं
कोई बुरा सपना था शायद.
पर मुझमें गर्माहट भरी थी -
बस, अब गायब न हो जाना तुम -
काश, तुम बस मेरी दुनिया में बसती,
कहीं और जाना न होता तुम्हें,
बस इस कमरे में बंद,
मेरे साथ. -
कैद थी मैं कहीं,
दम घुट रहा था. -
कोई नहीं,
बस सपना था,
कुछ देर और सो लो
अभी बुखार टूटा नहीं है. -

टिप्पणियाँ

'' सुपणे में साईं मिला
सोवत लिया जगाय
आँख न खोलूँ डरपता
मत सुपणा हो जाय.''
सपने तो सपने होते हैं, कब हुए वो अपने?

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