वे सफ़ेद फूल,तुम और मैं

याद है तुम्हें
शहर भर घूमें थे हम
कुछ सफ़ेद फूलों की तलाश में,
मिले नहीं थे हमें.

नाराज़ थीं तुम,
खुद से -
कि ला नहीं पाई
वे सफ़ेद फूल.

नाराज़ थीं तुम -
कि लाने पड़ रहे थे तुम्हें
वे फूल,
कि आज ही के दिन
कई साल पहले
तुम रो तक नहीं पाई थी,
कि कहना पड़ा था तुम्हें
'अब रो लो'.

उस दिन
बहुत डर गया था मैं,
आज तक दुबककर बैठा है मुझमें
वह डर,
कि बस यूँ ही, एक दिन,
नाराज़ हो जाओगी तुम
मुझसे भी,
अकारण.
और सज़ा दोगी
किसी और को.

टिप्पणियाँ

बहुत सुंदर। अच्छी रचना
फूल लाया
सोचा
सजा लोगी
पता न था
सज़ा दोगी!

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