Help me Dr. Curt Connors!

बाहर खड़ा
झांकता हूँ भीतर.
हर घडी
कोशिश करता
तुम्हारी साँसों के उतार-चढ़ाव को,
तुम्हारी आँखों में उठते-उतरते रंग को,
दौड़ती पुतलियों में थामे सपनों को-
कुस्वपनों को,
देख पाने की.

काश
एक छिपकली बन
दीवार पर चिपका रह सकता,
उन नकली तितलियों के पास,
जो रोज़ तुमसे आँखें मिलाती हैं.

टिप्पणियाँ

छिपकली की बजाय मोबाइल बन जाइये -- हाथ में खेलते रहोगे, सीने से लगे रहोगे :)

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