कत्तन वाली

धूप से भरी
एक बोतल रखी थी
इस नीले कमरे के
एक कोने में.

रोशनी से बुने
परदे टंगे थे
इसकी दीवारों पर.

आज
बोतल खाली हुई तो
बाहर निकल कर देखा,
पर अब
कोई टोकरी में ख्वाब लिए
इन सडकों पर नहीं फिरता.
किससे पूछूँ,
कौन लाएगा
एक बोतल भर धूप?

टिप्पणियाँ

सुंदर.

नीले कमरे के कोने में धूप से भरी बोतल ने आदिम अन्धकार में स्वत: प्रगटे हिरण्मय कलश के आद्य बिम्ब की याद दिला दी.

अमृता प्रीतम की 'कत्तनवाली' इसे एक नया आयाम दे गई.

हाँ, रोशनी को ज़रूर किरणों के तार से बुना जाता होगा [तभी तो यह कहा जा सकता है - 'रोशनी का एक दुशाला लाइए].
`किससे पूछूँ,
कौन लाएगा
एक बोतल भर धूप'

कुछ दिन ठहर जाइए, धूप ही धूप मिलेगी :)

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