अँधेरे की सलवट

इस ठन्डे, बर्फीले
उत्तर आधुनिक मैदान में
बसे हुए कोहरे को
थोडा तोड़ो,
तो देख सकूँ मैं भी
वह जिसका अभिनन्दन कर रहे हैं सब,
वह जो रहस्यमय अन्धकार की सलवटों में छिपा है.

ओस की बूँदें
ढक चुकी हैं
वह लहू की लकीर
जो दीमक खाने के बदले खिंची थी
घास के मैदान पर,
और
खुरदरे तट पर, खिसकती रेत में
बिल्ली का लहुलुहान जबड़ा
उभरता है झूमकर,
कुछ पल विकृत चेहरों का
हमजुबां बन कर.

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