दीवार - 3

वो रोज़ दिखाते हैं
शहर के बाहर बसा
कुदरत की गोद में बसा
वह मोहल्ला जहाँ
पुराने नशेडी बसते हैं-
समझदारों की बस्ती से दूर.

सोचते हैं
यहाँ से निकल मैं
वहाँ चला जाऊँगा.
जानते नहीं
हमजुबां की तलाश में
वहाँ भी भटक चुका हूँ मैं.

नहीं,
मैं तो यहीं बैठ
घुटनों पर कलाई रख
अपने मूक श्रोता से
बतियाऊंगा.

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