बगूला

रेत-
पिसे काँच सी-
एक पल रुकता हूँ
काटने लगती हैं.

लाल, गर्म खून की बूँदें.

दौड़ रहा हूँ,
पिंडलियों में
तेज़ाब-सा दौड़ रहा है,
और दिल जैसे
किवाड़ खडखड़ा रहा है.

पर यह विध्वंस
चला आया है
मेरे साथ ही
इन दीवारों के पीछे.

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