गुलाबी दुनिया

जीवंत यादें
कुछ मृत सपनों की
दौड़ रही हैं
मेरे मस्तिष्क में.

भटक रही हैं
पवित्र आत्माएं
मेरे सिर के भीतर.
गूँज रही हैं
उनकी अंतिम चीखें
लाल दीवारों से टकराकर.

टक्कर
इतनी तेज़
फट जाते हैं बार बार
अन्दर लगे पाइप.

टिप्पणियाँ

सपने तो सपने हैं, कब बने हैं अपने :(

दीपावली की शुभकामनाएं॥

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