Maybe All This -- Wislawa Szymborska शायद यह सब किसी लैब में हो रहा है? जहाँ दिन में एक बल्ब जलता है और रात को कई? शायद हम सब किसी प्रयोग की उपज हैं? एक से दूसरी शीशी में उलटे जाते टेस्टट्यूबों में घुमाए जाते, सिर्फ आखों से ही नहीं परखे जाते पर एक-एक कर उठाए जाते चिमटे के मुँह से? या शायद कोई हस्तक्षेप नहीं करता? सारे बदलाव आप ही होते हैं सुनियोजित ढंग से? ग्राफ बनता जाता है अनुमान अनुसार? शायद अब तक हममें कुछ दिलचस्प नहीं? आमतौर पर हम पर नज़र टिकती नहीं? बस बड़े युद्धों के लिए, या जब हम अपने हिस्से की ज़मीन से ऊंचे उठते हैं, या धरती के एक कोने से दुसरे में चले जाते हैं? या शायद इसके विपरीत हो एक दम छोटी-छोटी बातों में दिलचस्पी हो उन्हें? देखो ज़रा! बड़े परदे पर छोटी सी बच्ची अपनी ही आस्तीन पर बटन टांक रही है. चीखता है निरीक्षक और दौड़ें आते है सब लोग. कितना प्यारा जीव और कितना नन्हा-सा धड़कता दिल उसका! सुईं में धागा पिरो रही है कितने ध्यान से, देखो! ख़ुशी से चीख उठता है कोई : बॉस को बुलाओ! उन्हें तो यह अपनी आखों से देखना चाहिए!
टिप्पणियाँ
देखा था एक सपना
औरों की ही तरह..’
तो अब पिता-पुत्र सपने देखने लगे :)
आदरणीय चंद्रमौलेश्वर जी,
आप तो बुढापा -विशेषज्ञ हैं.अतः यौवन और वार्धक्य के सपनों का अंतर समझते होंगे.
आप कुमार लव के लेखन की मौलिकता पर संदेह न करें. उनके पिता को कष्ट हो सकता है. [ही...ही...ही...]