मकड़ी

प्रिय अ
कह नहीं सका
कभी तुम क्रोधित थी
कभी मैं कटु.

लिख रहा हूँ
कुछ शब्द
एक अजनबी भाषा में
तुम्हारे नाम

-
455F09EE3E7BF2B4
F4292E018B323833
A6FBAB5F4CC6A720
EB3CFA04059767C3
C1B6EB58DCBB87CB
186A2D111F4BF229
B44090E31125DA01
77758B7E86B5ADFB
6DF7FA4F8AC6DD53
DF9FAADF6F8F3756
219E61EB6991F151
7310DD7E90513C70
3B3AE240D386D930
2EFCD525F698BCBB
-

ना,
तुम्हारे उत्तर की
प्रतीक्षा नहीं है मुझे,
प्रयास न करो
समझने का,
अभ्यस्त हो चूका हूँ अब
तुम्हारे मौन का
आठ भुजाओं और असंख्य आँखों वाले
मौन का.

कठिन था बहुत
खिड़की के नीचे
खड़े होकर
तुम्हें पुकारते रहना
घंटी और मंजीरा लिए,
पर अब
सिल पर निसान पड़ ही गया है.

टिप्पणियाँ

Patali-The-Village ने कहा…
अति सुन्दर ...
‘ना,
तुम्हारे उत्तर की
प्रतीक्षा नहीं है मुझे...’

पर मेरे उत्तर की तो होगी ना :)
Luv ने कहा…
@Patali-The-Village: thanks. Happy that you liked it.

@cmp uncle: aapka uttar na aaye to lagta hi nahin ki maine kuchh likha hai... time without your comments was my worse time online :)

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शायद यह सब

जुराब

राज़