कुलस्यार्थे त्यजेदेकं

कतई सरल नहीं
वध करना-
अत्यंत आवश्यक है
पवित्र होना,
निरपराध होना - अबोध होना.
जानना कि मृत है वह पहले ही.
छोटी-सी भी शंका के लिए
कोई स्थान नहीं यहाँ-
कोई रिक्तता नहीं.

सिर रख
उसके कंधे पर
घंटों रोया था,
वह भी बाहों में भर
बहुत भावुक हुई.
स्वाभाविक भोलापन हमारा
निखर रहा था तब-
विरासत में मिला था
कवि पिता से, कभी.
...
प्रेम-
खिली धूप सा आनंद
आसमानी रंग लिए अपराध-बोध.
...
संभवतः एक कदम तक बढ़ा न पाऊँ
बिना सहारे,
तख्ते से बंध कर ही
खड़ा हो पाऊँ मैं
पाश के नीचे.
परन्तु,
झूलूँगा जब
शुद्धि कर लेने का
संतोष रहेगा.
और खेद
तुम्हारे द्रोह पर.

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