सब ओर भूरा

उतर आई नींद
साथ ही शांति भी,
नशीली-सी थकन लिए.

मौसम बदलता नहीं आज कल
हमेशा अनिश्चित.
सब ओर भूरा है नज़ारा
धूल भरा सा.

बिन बुलाए ही
आ बैठा है एक चूहा
किसी अँधेरे कोने में-
दिख नहीं रहा
ना ही चुप हो रहा है.
खरगोश होता तो शायद...

टिप्पणियाँ

Luv ने कहा…
@ संजय : thanks!
आलोक साहिल ने कहा…
बहुत ही खूबसूरत कविता...
ऐसी कविताओं को पढ़कर लगता है कि वास्तव में कविताओं में भी काले-गोरे और दलित सवर्ण का फर्क होता है...बहुत सुंदर...

आलोक साहिल

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