भूत

एक झटके से
टूट गई नींद,
एक ऐसे दुस्वप्न से,
विरले दुस्वप्न से
जो चलता रहता है
एक नींद से दूसरी नींद तक.

बाहर देखा
अँधेरा था दूर तक,
बस पास की खिड़की से
कुछ रोशनी बरस रही थी
अगली रेल पर.

अँधेरा था दूर तक,
कुछ महसूस हुआ-
लगा अभी वक़्त लगेगा
समझने में,
फिर लिखूंगा एक कविता-
शायद दो दिन बाद.
अँधेरे में बैठे हुए
नोट्स बनाए,
नोट्स - जो मिटा दिए दो दिन बाद
मिटा दिए
मिटा दिए पर
कुछ बदला नहीं उससे,
कुछ भी नहीं.
न दुस्वप्न,
न मैं.

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