गर्म सोता

जाने क्या बनेगा
पर हाथ सने हैं मिट्टी से
और उड़ रही है धूल हर ओर,
भर रही है फेफड़ों में,
बंद कर रही है रोमकूप,
धुंधला रही हैं दिशाएं सभी,
और कोई नहीं है आस-पास
हाथ धुलवाने को.

टिप्पणियाँ

खोजना होगा अपना जलस्रोत खुद मुझे
धोने होंगे खुद ही अपने हाथ
अपनी खातिर...
संक्रमण का भी तो डर है न!
इतनी मेहनत की है तो अच्छा सृजन होगा ही॥

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