भीगी रेत पर


रेत पर
लकीरें खींच
बनाई थी
कमरे की खिड़की
वहाँ खड़े हम,
बरसता पानी,
ख़ुशी से उछलती बूँदें
मैच जीतकर आए
बच्चों की तरह.

पाँव पटकती लहरों ने
धो दिया सब.
पाँव रह गए हमारे
रेत में धंसे,
दूर जाते कदमों के निशान
रेत की परतों के बीच
संचित होगए
सदा के लिए.


***Image from RDS

टिप्पणियाँ

ज़माने का दस्तूर है ये पुराना
बना कर मिटाना मिटा कर बनाना :)

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